15 वर्ष से 30 वर्ष के नौजवान बालकों को सही दिशा प्रदान करना इसका प्रमुख कार्य है। दिशा भटकने की यही उम्र है। अतः इसी दिशा में इनको समिति संस्कार का पाठ पढ़ाकर, दानव मानव के अंतर को समझाकर, राम – रावण, दुर्योधन और युधिष्ठिर जैसे आख्यानों को प्रस्तुतकर, नशा ही नाश की जड़ है, आदि भावों से ओतप्रोत कर समाज में व्यस्न मुक्त भारत जागृति का प्रयास कर रही है।
नौजवान बालकों के भविष्य में आने वाले अवरोधों का निदान भी कर रही है। शिक्षा व्यवसाय संबंधी कार्यों में आ रहे अवरोध के लिए ज्योतिष – वास्तु – वस्तुतः परिस्थिति का आकलन कर भविष्य निर्माण में संस्थान शास्त्रीय सहयोग प्रदान कर रहा है।
आदिवासी क्षेत्र में या अशिक्षित वर्ग को संस्कारवान बनाने के लिए हनुमान चालीसा, शिव चालीसा, दुर्गा चालीसा गणेश
चालीसा, रामायण व संस्कृत की सरल प्रार्थना उनसे करवायी जा रही है, जिससे वे लोग भी अपनी संस्कृति,संस्कारों की रक्षा स्वयं व आत्मीयजनों से करवा सके, संस्कारवान सके।