भूतलपर सृष्टि की उत्पति जिस पावन कर्म से हुई। आज उसी को मानव भूल बैठा है। पाश्चात्य संस्कृति की धूल में उड़ता हुआ जीव भूलोक को छोड़कर चंद्र मंगल लोक की यात्रा करने लग गया है। परिणाम प्रत्यक्ष है। जिस देश में घर घर में यज्ञ होता था, आज वहां क्या हो रहा है।
भगवान को भोजन यज्ञ से मिलता है। यज्ञ से ही सकल देव प्रसन्न होते हैं। उनकी प्रसन्नता से ही अखिल लोक सञ्चालित है। विश्व कल्याण में, महामारी जैसी आपदा में, भूकंप व उल्कापात में, सुनामी जैसी लहरों में भगवान ही याद आते हैं। पर भगवान को कुछ खिलाना ना पड़े, भगवान हमारी सुनते रहे, हम भगवान की न सुने, न माने। ये हम सबकी धारणा बन चुकी है।
प्रिय मित्रों, आपदा से निवृति के लिए देश में रामराज्य की भावना स्थापित करने के लिए महायज्ञ ही साधन है।

जब – जब राक्षसों पर संकट आया, राक्षसों ने विधि पूर्वक यज्ञ करवाया। हम तो मनुष्य हैं। प्रत्येक संकट यज्ञ से दूर होते हैं।सकल रोग शोक की निवृति यज्ञ से है। ईश्वर प्रसन्न, पितरतुष्ट यज्ञ से ही होते हैं। 84 लाख योनियों को भोजन यज्ञ से ही मिलता है। दूसरा कोई साधन नहीं है।
प्राच्यसंस्कृति को जीवन शैली में उतारते हुए महायज्ञ को विधिपूर्वक करना चाहिए। धर्मसम्राट जी ने देश की आजादी व राम राज्य स्थापनार्थ विशाल महायज्ञों की श्रृंखला बनाई, उनके कृपा पात्र यज्ञसम्राट वीरव्रती श्री प्रवल जी महाराज ने भारतवर्ष में यज्ञ की धूम मचाई! भारतवर्ष में सबसे ज्यादा व विशाल यज्ञ करने वाले 273 यज्ञों की श्रृंखला बनाने वाले, महापुरुष यज्ञ सम्राट पूज्य श्री प्रवल जी महाराज हुए।
इनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलो, बढ़ो, स्वयं सुखी निरोगी रहो, दूसरों को भी रखो। यह सब यज्ञ से ही संभव है।