sanatan-dharma-ke-16-sanskar

बंधुओं। संस्कार वह विद्या है जिसके द्वारा प्राणी अपने को बदलता है। संस्कार का अर्थ है पुनीत करना, परिमार्जित करना, मलिनता को हटाकर निर्मलता का आधान करना, गंदगी को हटाकर अच्छाईयाँ लाना। यह कार्य संस्कार करता है। जब एक अमूर्त में चेतनता आ जाती है। तब तो यह दिव्य शरीर भी प्रभु के विशेष अनुग्रह से प्राप्त हुआ है। यह पशुवत आचरण करने हेतु नहीं मिला है। एकमात्र विशिष्ट योनि मानव है, जो पढ़ सकता है, स्पष्ट वाणी को बोल सकता है, कार्य कर सकता है, परोपकार कर ठाकुर की सेवा कर सकता है, अंत में गोलोकधाम भी जा सकता है। अन्य 83 लाख 99 हजार 999 योनियों में अपवाद स्वरूप होंगे जटायु प्रभृति। जिन्होंने परम पुरुष श्री राम को पहचाना। मगर अन्य गिद्ध पक्षियों ने नहीं। 16 संस्कार सम्पन्न ही राम है। संस्कार विना पुरुष ही रावण है। संस्कारों के ज्ञानार्थ आए, और संस्कारों का प्रशिक्षण प्राप्त कर जीवन में अपार सुख को प्राप्त कर सकें।

मनुष्य के जन्म के प्राक व मृत्यु के उपरांत तक चलने वाली विधा का नाम संस्कार है। परमात्मा ने मात्र मनुष्य के शाश्वत कल्याण हेतु पथ प्रशस्त किया है। भारतवर्ष में भारतीय संस्कृति एव संस्कृत में संस्कारों के ऊपर विशेष बल डाला है। प्राचीन ऋषि – महर्षि – राजर्षि – ब्रहषियों ने सुख – समृद्धि के साधनों को त्याग कर कंदराओं – वृक्षों – नदियों का आश्रय लेकर मानवत्व संपादनार्थ जिस तत्वज्ञान का साक्षात्कार किया उसका नाम है संस्कार। मनुष्य जन्म से अबोध होता है। परंतु संस्कारों से मनुष्य के आंतरिक व बाह्र्य व्यक्तित्व का निखार व परिष्कार होता है।

जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैर्द्विज उच्यते।
विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रियलक्षणम्॥

अत एव सुख समृद्धि कल्याण चाहने वाले प्रत्येक वर्ण के प्राणी को अपनी पुरातन संस्कृति व परंपरा का अनुगमन करते हुए संस्कारवान होना चाहिए। जिसके बल पर हम पराक्रमी, बलवान, विद्यावान, गुणवान, यशोवान, मेधावान , आयुष्मान हुआ करते थे ! वह बल हमारा षोडश संस्कार का बल था।

हमारे यहां प्रत्येक संस्कार शुभ मुहूर्त, शुभ नक्षत्र में संपादित किए जाते थे, आज कलिकाल की विषम वायु ने संस्कारों को उड़ा दिया, उसका परिणाम आप देख रहे हैं। काम- क्रोध -लोभ- मोह इत्यादि अवगुण उत्तरोत्तर बढ़ते चले जा रहे हैं । दिनों दिन शांति का अभाव हो गया है। तृष्णाएँ प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है। ऐसी परिस्थिति में संस्कारवान होना परमावश्यक है। इसी पावनधरा पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, सूरदास, कबीरदास, रहीम, मीराबाई, कर्मा बाई, प्रभृति भक्त व स्वामी करपात्री जी महाराज, स्वामी कृष्णवोधाश्रम जी महाराज महापुरुषों ने इन्हीं संस्कारों के बल पर स्वार्थमय वृत्ति को त्याग कल्याण हेतु मार्ग प्रशस्त किया।

इसी क्रम में यह आपका भवन संस्कारशाला भवन होगा। जिसमें 16 संस्कारों को 1 वर्ष में सिखाया जाएगा व् प्रशिक्षित विद्वानों को समाज में उतार कर 16 संस्कारों पर विशेष बल डालकर संस्कार संपादित कराए जाएंगे। अपने को संस्कार संपन्न करने का शुभावसर है। आईये हम सब मिलकर संस्थान के कार्य में हाथ बटांए।