संस्कारशाला, लोनावाला, महाराष्ट्र
बंधुओं। संस्कार व विद्या है जिसके द्वारा प्राणी अपने को बदलता है। संस्कार का अर्थ है पुनीत करना, परिमार्जित करना आदि। मलिनता को हटाकर निर्मलता का आधान करना, गंदगी को हटाकर अछाईयाँ लाना। यह कार्य संस्कार करता है। हम जिस जगह उठे, बैठे , वहां यदि पोछा – झाड़ू ना लगाएं तो क्या होगा, गंदगी का भंडार हो जाएगा और प्रतिदिन झाड़ू पोछा लगाकर वहां की सफाई करने से निर्मलता – स्वच्छता आ जाती है। जब एक अमूर्त में चेतनता आ जाती है। तब तो यह दिव्य शरीर भी प्रभु की विशेष अनुग्रह से प्राप्त हुआ है। यह पशुवत आचरण करने हेतु नहीं मिला है। एकमात्र विशिष्ट योनी मानव है। जो पढ़ सकता है। स्पष्ट वाणी को बोल सकता है कार्य कर सकता है। परोपकार, ठाकुर की सेवा कर सकता है, अंत में गोलोकधाम भी जा सकता है। अन्य 83 हजार 99 हजार 999 हजार योनियों में अपवाद स्वरूप होंगे जटायु प्रभृत्ति। जिन्होंने परम पुरुष श्री राम को पहचाना। मगर अन्य गिद्ध पक्षियों ने नहीं। मनुष्य के जन्म के प्राक व मृत्यु के उपरांत तक चलने वाली विधा का नाम संस्कार है। परमात्मा ने मात्र मनुष्य के शाश्वत कल्याण हेतु पथ प्रशस्त किया है। भारतवर्ष में भारतीय संस्कृति एव संस्कृत में संस्कारों के ऊपर विशेष बल डाला है।
श्री राधाकृष्ण मंदिर, रानी, राजस्थान
बंधुओं। संस्कार वह विद्या है जिसके द्वारा प्राणी अपने को बदलता है। संस्कार का अर्थ है पुनीत करना, परिमार्जित करना आदि। मलिनता को हटाकर निर्मलता का आधान करना, गंदगी को हटाकर अच्छाईयाँ लाना। यह कार्य संस्कार करता है। जब एक अमूर्त में चेतनता आ जाती है। तब तो यह दिव्य शरीर भी प्रभु के विशेष अनुग्रह से प्राप्त हुआ है। यह पशुवत आचरण करने हेतु नहीं मिला है। एकमात्र विशिष्ट योनि मानव है, जो पढ़ सकता है। स्पष्ट वाणी को बोल सकता है, कार्य कर सकता है। परोपकार, कर ठाकुर की सेवा कर सकता है, अंत में गोलोकधाम भी जा सकता है। अन्य 83 लाख 99 हजार 999 योनियों में अपवाद स्वरूप होंगे जटायु प्रभृति। जिन्होंने परम पुरुष श्री राम को पहचाना। मगर अन्य गिद्ध पक्षियों ने नहीं। 16 संस्कार सम्पन्न ही राम है। संस्कार विना पुरुष ही रावण है। संस्कारों के ज्ञानार्थ आए, और संस्कारों का प्रशिक्षण प्राप्त कर जीवन में अपार सुख को प्राप्त कर सकें।
श्री सिद्धेश्वर महादेव सेवा समिति, भादरा, राजस्थान
बंधुओं। संस्कार वह विद्या है जिसके द्वारा प्राणी अपने को बदलता है। संस्कार का अर्थ है पुनीत करना, परिमार्जित करना आदि। मलिनता को हटाकर निर्मलता का आधान करना, गंदगी को हटाकर अच्छाईयाँ लाना। यह कार्य संस्कार करता है। जब एक अमूर्त में चेतनता आ जाती है। तब तो यह दिव्य शरीर भी प्रभु के विशेष अनुग्रह से प्राप्त हुआ है। यह पशुवत आचरण करने हेतु नहीं मिला है। एकमात्र विशिष्ट योनि मानव है, जो पढ़ सकता है। स्पष्ट वाणी को बोल सकता है, कार्य कर सकता है। परोपकार, कर ठाकुर की सेवा कर सकता है, अंत में गोलोकधाम भी जा सकता है। अन्य 83 लाख 99 हजार 999 योनियों में अपवाद स्वरूप होंगे जटायु प्रभृति। जिन्होंने परम पुरुष श्री राम को पहचाना। मगर अन्य गिद्ध पक्षियों ने नहीं। 16 संस्कार सम्पन्न ही राम है। संस्कार विना पुरुष ही रावण है। संस्कारों के ज्ञानार्थ आए, और संस्कारों का प्रशिक्षण प्राप्त कर जीवन में अपार सुख को प्राप्त कर सकें।
सद्भावना धाम, वृन्दावन
बंधुओं। संस्कार वह विद्या है जिसके द्वारा प्राणी अपने को बदलता है। संस्कार का अर्थ है पुनीत करना, परिमार्जित करना आदि। मलिनता को हटाकर निर्मलता का आधान करना, गंदगी को हटाकर अच्छाईयाँ लाना। यह कार्य संस्कार करता है। जब एक अमूर्त में चेतनता आ जाती है। तब तो यह दिव्य शरीर भी प्रभु के विशेष अनुग्रह से प्राप्त हुआ है। यह पशुवत आचरण करने हेतु नहीं मिला है। एकमात्र विशिष्ट योनि मानव है, जो पढ़ सकता है। स्पष्ट वाणी को बोल सकता है, कार्य कर सकता है। परोपकार, कर ठाकुर की सेवा कर सकता है, अंत में गोलोकधाम भी जा सकता है। अन्य 83 लाख 99 हजार 999 योनियों में अपवाद स्वरूप होंगे जटायु प्रभृति। जिन्होंने परम पुरुष श्री राम को पहचाना। मगर अन्य गिद्ध पक्षियों ने नहीं। 16 संस्कार सम्पन्न ही राम है। संस्कार विना पुरुष ही रावण है। संस्कारों के ज्ञानार्थ आए, और संस्कारों का प्रशिक्षण प्राप्त कर जीवन में अपार सुख को प्राप्त कर सकें।
सिद्धेश्वर महादेव कल्याण आश्रम, राजघाट, बुलंदशहर
पुण्य सलीला मां जान्हवी भागीरथी गंगा के किनारे बसा हुआ राजघाट अत्यंत पवित्र स्थान है। यहां आने जाने हेतु रेलवे स्टेशन भी हैं। दिन-रात आवागमन होता रहता है। इस भूभाग को सिद्धों की भूमि कहा जाता है। देश के विशिष्ट महापुरुषों की उद्भवस्थली तपस्थली अध्ययनस्थली रही है। लोक में दूसरी काशी पुकारी जाने वाली नरवर स्थली भी नरवर इसी आश्रम के पास हैं। जहां स्वयं धर्मनिष्ठ तपोमूर्ति पूज्य श्री जीवनदत्त जी महाराज कुलपति – नरवर पाठशाला, श्रद्धेय स्वामी विश्वेश्वर आश्रम जी महाराज, स्वामी श्री अखण्डानन्दजी महाराज, उड़िया बाबा जी महाराज, भृगु जी महाराज, स्वामी श्री विष्णु आश्रम जी महाराज। प्रभृत्ति महापुरुषों ने अपनी साधना के बल पर इस भूभाग को प्रकाशित किया। श्रद्धेय ब्रह्मचारी गायत्री तपोपूत श्री त्रंबकेश्वर चैतन्य जी महाराज श्री की अध्ययन स्थली व तपस्थली भी यह क्षेत्र रहा है। उनके मन में इस भूमि के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव बना रहता है। उनका कहना है कि इस भूमि से उऋण कैसे हुआ जा सकता है। अतः वेद वेदांग का अध्ययन होता रहे। संतो, महापुरुषों: अतिथियों की सेवा होती रहे, तदर्थ एक स्थान है। एक दिव्य रमणीय उद्यान से सुसज्जित 10 बीघा लगभग भूमि पृष्ठ भाग में गंगा महारानी के दिव्य दर्शन, शीतल -शीतल मंद – मंद वायु के स्पर्श से आनंदित वाला यह आश्रम सिद्धेश्वर महादेव कल्याण आश्रम’ का क्रय स्वामी श्री कल्याण जी महाराज से श्रद्धेय चरण पूज्य प्रवोधश्रम जी महाराज एवं त्र्यंम्बकेश्वर चैतन्य जी महाराज के नाम से रजिस्ट्री हुई है।
दंडी ,स्वामी विष्णुआश्रम संस्थान, बहादराबाद हरिद्धार
बंधुओं। संस्कार वह विद्या है जिसके द्वारा प्राणी अपने को बदलता है। संस्कार का अर्थ है पुनीत करना, परिमार्जित करना आदि। मलिनता को हटाकर निर्मलता का आधान करना, गंदगी को हटाकर अच्छाईयाँ लाना। यह कार्य संस्कार करता है। जब एक अमूर्त में चेतनता आ जाती है। तब तो यह दिव्य शरीर भी प्रभु के विशेष अनुग्रह से प्राप्त हुआ है। यह पशुवत आचरण करने हेतु नहीं मिला है। एकमात्र विशिष्ट योनि मानव है, जो पढ़ सकता है। स्पष्ट वाणी को बोल सकता है, कार्य कर सकता है। परोपकार, कर ठाकुर की सेवा कर सकता है, अंत में गोलोकधाम भी जा सकता है। अन्य 83 लाख 99 हजार 999 योनियों में अपवाद स्वरूप होंगे जटायु प्रभृति। जिन्होंने परम पुरुष श्री राम को पहचाना। मगर अन्य गिद्ध पक्षियों ने नहीं। 16 संस्कार सम्पन्न ही राम है। संस्कार विना पुरुष ही रावण है। संस्कारों के ज्ञानार्थ आए, और संस्कारों का प्रशिक्षण प्राप्त कर जीवन में अपार सुख को प्राप्त कर सकें।
रघुनाथ मंदिर, बहादुरगढ़
बंधुओं। संस्कार वह विद्या है जिसके द्वारा प्राणी अपने को बदलता है। संस्कार का अर्थ है पुनीत करना, परिमार्जित करना आदि। मलिनता को हटाकर निर्मलता का आधान करना, गंदगी को हटाकर अच्छाईयाँ लाना। यह कार्य संस्कार करता है। जब एक अमूर्त में चेतनता आ जाती है। तब तो यह दिव्य शरीर भी प्रभु के विशेष अनुग्रह से प्राप्त हुआ है। यह पशुवत आचरण करने हेतु नहीं मिला है। एकमात्र विशिष्ट योनि मानव है, जो पढ़ सकता है। स्पष्ट वाणी को बोल सकता है, कार्य कर सकता है। परोपकार, कर ठाकुर की सेवा कर सकता है, अंत में गोलोकधाम भी जा सकता है। अन्य 83 लाख 99 हजार 999 योनियों में अपवाद स्वरूप होंगे जटायु प्रभृति। जिन्होंने परम पुरुष श्री राम को पहचाना। मगर अन्य गिद्ध पक्षियों ने नहीं। 16 संस्कार सम्पन्न ही राम है। संस्कार विना पुरुष ही रावण है। संस्कारों के ज्ञानार्थ आए, और संस्कारों का प्रशिक्षण प्राप्त कर जीवन में अपार सुख को प्राप्त कर सकें।
श्री राधामाधव गौशाला, कवर्धा, छत्तीसगढ़
बंधुओं। संस्कार वह विद्या है जिसके द्वारा प्राणी अपने को बदलता है। संस्कार का अर्थ है पुनीत करना, परिमार्जित करना आदि। मलिनता को हटाकर निर्मलता का आधान करना, गंदगी को हटाकर अच्छाईयाँ लाना। यह कार्य संस्कार करता है। जब एक अमूर्त में चेतनता आ जाती है। तब तो यह दिव्य शरीर भी प्रभु के विशेष अनुग्रह से प्राप्त हुआ है। यह पशुवत आचरण करने हेतु नहीं मिला है। एकमात्र विशिष्ट योनि मानव है, जो पढ़ सकता है। स्पष्ट वाणी को बोल सकता है, कार्य कर सकता है। परोपकार, कर ठाकुर की सेवा कर सकता है, अंत में गोलोकधाम भी जा सकता है। अन्य 83 लाख 99 हजार 999 योनियों में अपवाद स्वरूप होंगे जटायु प्रभृति। जिन्होंने परम पुरुष श्री राम को पहचाना। मगर अन्य गिद्ध पक्षियों ने नहीं। 16 संस्कार सम्पन्न ही राम है। संस्कार विना पुरुष ही रावण है। संस्कारों के ज्ञानार्थ आए, और संस्कारों का प्रशिक्षण प्राप्त कर जीवन में अपार सुख को प्राप्त कर सकें।