परमपूज्य गुरुदेव धर्मधुरन्धर यज्ञसम्राट वीरव्रती श्री प्रबलजी महाराज

विश्वबंद्य धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महराज के परमकृपापात्र शिष्य आध्यात्मिक जगत के जाज्बल्यमान प्रकाशपुञ्ज, संस्कृत संस्कृति एवं संस्कारों के प्रबल संपोषक, श्री विद्या समाराधक, गोविप्रसंपूजक, यज्ञविज्ञान के मर्मज्ञ, श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ त्यागी बलिदानी धर्मधुरन्धर यज्ञसम्राट वीरव्रती श्री प्रबलजी महराज के नाम से ख्यापित हुए। काशी के विदवानों ने ‘द्विशतक्रतु’ की उपाधि से सम्बोधित किया। गंगा – यमुना – नर्मदा मैया के परम भक्त, तथा उनके अन्नपूर्णा सिद्धि के अगणित प्रसंगो का अनुभव समाज ने अनेकों बार किया।
आप सरल सहज स्वभाव के परमधनी, वैराग्य की प्रतिमूर्ति, साक्षात् कुबेर भगवान भी जिनके औदार्य से कम्पित होते हो, दानियों में दानवीर, त्यागियों में महात्यागी, तपस्वियों में महातपस्वी, ज्ञानियों में महाज्ञानी। आपश्री ने शिक्षा – स्वास्थ्य – प्रकृति – गौ – राष्ट्रभक्ति के प्रति अनन्य अनुराग रखते हुए कोने – कोने में जनमानस को राष्ट्रभक्ति पूर्ण धर्म का उपदेश दिया।
आप द्वारा देश में अनेक संस्कृत विद्यालय,गौशाला – चिकित्सालय,देवालय -अन्नक्षेत्र आदि सञ्चालित है।
आपने आजीवन देश में अध्यात्म ऊर्जा को प्रसारित करने का कार्य किया है। जिसके परिणामस्वरूप कलिकाल की विषमवायु से दग्ध जीव आज भी सुख शांति प्राप्त कर रहा है, ये महापुरुषों की कृपा का फल है।
आपश्री ने संस्कारों की शिक्षा पर विशेष बल दिया है।
धर्मसंघीय परम्परा के कट्टर प्रहरी बनकर कार्यंवा साधयेयं देहं वा पातयेयम, उक्ति सार्थक करते हुए वाक् सिद्ध महापुरुष ने अपनी ऐहलोकिक लीला संवरण कर २०१८ में काशी की पावनधरा पर पूर्व संकल्पित औधर्वदैहिक संस्कार के द्वारा शिवत्व को प्राप्त किया। परमपूज्य गुरुदेव भगवान के संकल्पों की साकारमूर्ति है उनके द्वारा संस्थापित विविध संस्थान। आज हम सभी का परम कर्तव्य है पूज्यश्री के इन संस्थानों की अभ्युन्नति में सहयोगी बनकर उनके श्रीचरणों में सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करें। आपका आत्मीयता भरा सहकार हमारा सम्बल बनकर ऊर्जा प्रदान करेगा।