पुण्य सलीला मां जान्हवी भागीरथी गंगा के किनारे बसा हुआ राजघाट अत्यंत पवित्र स्थान है। यहां आने जाने हेतु रेलवे स्टेशन भी हैं। दिन-रात आवागमन होता रहता है। इस भूभाग को सिद्धों की भूमि कहा जाता है। देश के विशिष्ट महापुरुषों की उद्भवस्थली तपस्थली अध्ययनस्थली रही है। लोक में दूसरी काशी पुकारी जाने वाली नरवर स्थली भी नरवर इसी आश्रम के पास हैं। जहां स्वयं धर्मनिष्ठ तपोमूर्ति पूज्य श्री जीवनदत्त जी महाराज कुलपति – नरवर पाठशाला, श्रद्धेय स्वामी विश्वेश्वर आश्रम जी महाराज, स्वामी श्री अखण्डानन्दजी महाराज, उड़िया बाबा जी महाराज, भृगु जी महाराज, स्वामी श्री विष्णु आश्रम जी महाराज। प्रभृत्ति महापुरुषों ने अपनी साधना के बल पर इस भूभाग को प्रकाशित किया। श्रद्धेय ब्रह्मचारी गायत्री तपोपूत श्री त्रंबकेश्वर चैतन्य जी महाराज श्री की अध्ययन स्थली व तपस्थली भी यह क्षेत्र रहा है। उनके मन में इस भूमि के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव बना रहता है। उनका कहना है कि इस भूमि से उऋण कैसे हुआ जा सकता है।

अतः वेद वेदांग का अध्ययन होता रहे। संतो, महापुरुषों: अतिथियों की सेवा होती रहे, तदर्थ एक स्थान है। एक दिव्य रमणीय उद्यान से सुसज्जित 10 बीघा लगभग भूमि पृष्ठ भाग में गंगा महारानी के दिव्य दर्शन, शीतल -शीतल मंद – मंद वायु के स्पर्श से आनंदित वाला यह आश्रम सिद्धेश्वर महादेव कल्याण आश्रम’ का क्रय स्वामी श्री कल्याण जी महाराज से श्रद्धेय चरण पूज्य प्रवोधश्रम जी महाराज एवं त्र्यंम्बकेश्वर चैतन्य जी महाराज के नाम से रजिस्ट्री हुई है। जब से निरंतर वहां साधना – व्रत -जप – अनुष्ठान – कथा – यज्ञ व अध्ययन चलता रहता है। साधु महापुरुषों का आवागमन बना रहता है। सभी की सेवा करना आश्रम का मुख्य उद्देश्य है।