धर्मावतार धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महराज

भगवत्पाद आधगुरु शंकराचार्य भगवान के उपरान्त 21वीं शताव्दी के अभिनवशंकर पदवाक्यप्रमाण अष्टांग योगनिष्ठ विश्वविश्रुत श्री धर्मसम्राट हरिहरानंद सरस्वती स्वामी श्री करपात्री जी महाराज का पारावारीण अवतार 1907 में धर्मरक्षार्थ हुआ !
आपश्री का नाम करपात्र क्यों पड़ा ? क्योंकि करौ एव पात्रं यस्य सः करपात्र, कर ही है पात्र जिसके, वे करपात्री कहलाये ! हाथों में ही जितना आ जाए, उसी से एक समय भिक्षा करना, आजीवन एक वस्त्रधारी, गंगाजलसेवी,आजीवन धनस्पर्श किये बिना धर्म का प्रचार प्रसार करने वाले !
सृष्टि के इतिहास में पितामह भीष्म के उपरान्त पूज्यजनों की प्रसन्नता हेतु अपने सुखों का उत्सर्ग करने वाले महामनीषी, लेखनी के परमधनी, वक्ताओं में प्रखर शास्त्रनिष्ठ वक्तृता,योगियों में योगी, ज्ञानी में महाज्ञानी, भक्तों में भक्त, विरक्तों में विरक्त, त्यागी में महात्यागी, पराम्वा माँ भगवती त्रिपुर सुंदरी आगे

धर्मधुरन्धर यज्ञसम्राट वीरव्रतीश्री प्रबलजी महराज

विश्‍वबन्द्य धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज के परमकृपापात्र शिष्य आध्यात्मिक जगत के जाज्बल्यमान प्रकाशपुञ्ज, संस्कृत संस्कृति एवं संस्कारों के प्रवल संपोषक, श्री विद्या समाराधक, गोविप्रसंपूजक, यज्ञविज्ञान के मर्मज्ञ, श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ त्यागी बलिदानी धर्मधुरन्धर यज्ञसम्राट वीरव्रती श्री प्रबलजी महाराज के नाम से ख्यापित हुए ! काशी के विदवानों ने ‘द्विशतक्रतु’ की उपाधि से सम्बोधित किया ! गंगा – यमुना – नर्मदा मैया के परम भक्त, तथा उनके अन्नपूर्णा सिद्धि के अगणित प्रसंगो का अनुभव समाज ने अनेकों बार किया !
आप सरल सहज स्वभाव के परमधनी, वैराग्य की प्रतिमूर्ति, साक्षात् कुबेर भगवान भी जिनके औदार्य से कम्पित होते हो, दानियों में दानवीर, त्यागियों में महात्यागी, तपस्वियों में महातपस्वी, ज्ञानियों में महाज्ञानी ! आपश्री ने शिक्षा – स्वास्थ्य – प्रकृति – गौ – राष्ट्रभक्ति के प्रति अनन्य अनुराग रखते हुए कोने – कोने में जनमानस को राष्ट्रभक्ति पूर्ण धर्म का उपदेश दिया !
आप द्वारा देश में अनेक संस्कृत विद्यालय,गौशाला – चिकित्सालय,देवालय -अन्नक्षेत्र आदि सञ्चालित है !
आपने आजीवन देश में अध्यात्म ऊर्जा को प्रसारित करने का कार्य किया है ! जिसके परिणामस्वरूप कलिकाल की विषमवायु से दग्ध जीव आज भी सुख शांति प्राप्त कर रहा है, ये महापुरुषों की कृपा का फल है !
आपश्री ने संस्कारों की शिक्षा पर विशेष बल दिया है !
धर्मसंघीय परम्परा के कट्टर प्रहरी बनकर कार्यंवा साधयेयं देहं वा पातयेयम, उक्ति सार्थक करते हुए वाक् सिद्ध महापुरुष ने अपनी ऐहलोकिक लीला संवरण कर २०१८ में काशी की पावनधरा पर पूर्व संकल्पित और्ध्वदैहिक संस्कार के द्वारा शिवत्व को प्राप्त किया ! परमपूज्य गुरुदेव भगवान के संकल्पों की साकारमूर्ति है उनके द्वारा संस्थापित विविध संस्थान ! आज हम सभी का परम कर्तव्य है पूज्यश्री के इन संस्थानों की अभ्युन्नति में सहयोगी बनकर उनके श्रीचरणों में सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करें ! आपका आत्मीयता भरा सहकार हमारा सम्बल बनकर ऊर्जा प्रदान करेगा !

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समर्थ श्री त्र्यम्बकेश्वर चैतन्य जी महाराज

शंकराचार्य परम्परा संवाहक, अद्वैतवाद सम्पोषक, वेद वेदांग निष्णात, परमश्रध्देय वीतराग शिरोमणि श्री त्र्यम्बकेश्वर चैतन्य जी महाराज ने 2003 नाशिक महाकुंभ के पावन अवसर पर सन्यास दीक्षा प्राप्त की ! परम श्रध्देय द्विशतक्रतु वीर व्रती श्री प्रबल जी महाराज से दीक्षा प्राप्त कर सघन वनों की कन्दर व जंगलों में तपस्या कर उत्कृष्ट कोटि की साधना से समाज हितार्थ ग्रंथों का प्रणयन किया ! मां गंगा – गायत्री नर्मदा की आहैतु की कृपा महाराज श्री पर रही है ! अनेक पुरश्चरण, अनेक परिक्रमा कर तन – मन को परम पवित्र बनाया है ! लेखनं शैली के परमधनी, प्रवचन की अद्भुत शैली ने पूरे देश को मंत्रमुग्ध किया है ! शास्त्रों का अगाध पांडित्य,नित्यनिरंतर सरल व सहज स्वभाव के परम धनी महाराज श्री हैं ! ज्ञान – भक्ति – वैराग्य की त्रिवेणी का दर्शन महाराज श्री के जीवन शैली से ज्ञात होता है !
आप ही के मार्ग निर्देशन में अनेक संस्थाएं प्रगति पथ पर अग्रसर हैं ! शिक्षा – चिकित्सा – वैदिक – संस्कृति – यज्ञ गौ – संत ब्राह्मण प्रकृति का संरक्षण संवर्धन महाराज ऋषि के आशीर्वाद से हो रहा है !

पीठाधीश्वर पूज्य श्री गुण प्रकाश चैतन्य जी महाराज

भारत की अशक्त सशक्त युवापीढ़ी को समर्थ व शक्तिशाली बनाने में अथक परिश्रमी युवासन्त श्रद्धेय प्रवर अनंतश्री 1008 डॉ गुण प्रकाश चैतन्य जी महाराज ।
बाल्यकाल से विरक्त,भौतिक शिक्षा में परम चरम को स्पर्शकर आज विलुप्त सनातन धर्म की शिक्षा प्रदान कर रहे है।
वेदों की ऋचाओ में नव नवान्वेषण,यज्ञ संस्कृति से समूचे विश्व को लाभ, 16 संस्कारों पर प्रशिक्षण, गौ माँ की सेवा, वेदों का निरंतर स्वाध्याय हेतु पाठशाला, प्रकृति की सेवा महाराजश्री कर व करवा रहे है।
मात्र संस्कारवान जीव ही प्रकृति गो विप्र साधु कुलपरंपरा व समाज का कल्याण कर सकता है।
धर्मसम्राट जी महाराज,यज्ञ सम्राट जी महाराजश्री के संकल्प को पूर्ण करना ही आपश्री का ध्येय है।।
हर हर महादेव

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