अनन्तश्री विभूषित यतिचक्रचूड़ामणि अभिनवशङ्कर विश्ववन्द्य धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज का प्रादुभ 9वीं सदी के प्रारम्भ में हुआ। बचपन में ही पूज्यश्री जी ने परतन्त्रता की वेडियों में जकड़ी सिसकती भारतमाता की वेदना को समझा, विदेशी आक्रान्ताओं लुटेरों तानाशाहों मुगलों के भीषणतम क्रूर प्रहारों से जर्जर भारतीय संस्कृति अंग्रेजियत की ओर प्रलोभनवश खिची चली जा रही थी।
ऐसी विकराल भयावह परिस्थिति में आध्यात्मिक शक्ति संपन्न पूज्यश्री ने भारतवर्ष को गौरवान्वित करते हुए अखिल भारतवर्षीय धर्मसंघ के माध्यम से विशालतम महायज्ञों की मन्त्रपूत महाज्वाला के दारिद्र्य विनाशक सौरभ द्वारा सनातन धर्म के शास्त्रीय स्वरूप को प्रतिष्ठा प्रदान की।
हमको सन्मार्ग दिखा पूज्य श्री 1982 में ब्रह्मलीन हुए।
तदनन्तर धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज के पद चिन्हों पर चलते हुए उनके संकल्पों को साकार करने हेतु श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ यज्ञसम्राट वीरव्रती श्री प्रबल जी महाराज ने ‘स्वामी करपात्री फाउंडेशन’ की स्थापना 1996 में समाज में शिक्षा, संस्कार, यज्ञ, गौ व प्रकृति संरक्षण संवर्धन संपोषण हेतु की। यह संस्थान निरन्तर अपने समाजोपयोगी रचनात्मक अभियानों द्वारा जनमानस के समादर का केंद्र बन रहा है