भारतवर्ष की प्राण भूता मारवाड़ भूमि को संतों/सूरों एवं संस्कृति को कोटीशः बंदन करते हुए हनुमानगढ़ जनपद की तहसील भादरा की ओर चले। जहां आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र, पर्यावरण संरक्षण केंद्र, विप्रसंतगौचरणभूमि से सिञ्चित यह पावनतम स्थली तथा वहां के भद्रप्रद पुरुषों के मन में बसी यह दिव्य धरा पूज्य श्री प्रबल जी महाराज की कुटिया के नाम से जानी मानी जाती है। जहां नित्य निरंतर शिक्षा संस्कार व साधना पर विशेष बल दिया जाता है। पूज्य श्री महाराज ने श्री काशी के उपरांत इस को अपनी कर्मभूमि माना है। माने भी क्यों ना ? जहां पर देश के माने जाने सिद्ध महापुरुष धर्म सम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज, गोवर्धन पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जी निरंजन देव तीर्थ जी महाराज, पूज्य स्वामी श्री शंकरानंद सरस्वती जी महाराज, पूज्य श्री नंदनंदनानंद सरस्वती जी महाराज, ज्योतिष्पीठाश्वर ज.गु. शंकराचार्य स्वामी श्री माधवाश्रम जी महाराज प्रभृति महापुरुषों के पावनतम चरणारविन्दों का मकरंद जिस स्थली को प्राप्त हो गया हो।

1979 के समय श्री प्रबल जी महाराज ने भादरा की धरा को शतमुख कोटि होमात्मक यज्ञ के लिए चुना। उस समय यह ‘धरती धोरारी’ वाली कही जाती थी। जहां दिन में भी जाने से लोग कतराते थे’ रात्रि में तो मतलब ही नहीं। अद्वितीय यज्ञ संपन्न हुआ। सभी महापुरुष पधारे। आस्तिकजनों की भावना दिनों दिन बढ़ती गई। अब तक ऐसा अनूठा विलक्षणतम यज्ञ इस धरा पर नहीं हुआ था। महापुरुषों के आगमन से भादरा धरा अत्यंत पुनीत हुई। वहां के भद्रपुरुषों ने ऐसे विलक्षण यज्ञ को देख, धर्म सम्राट जी एवं गोवर्धन पीठाधीश्वर जी से  पूज्य श्री जी महाराज के माध्यम से यह संदेश दिलाया कि भादरा की जनता को यह कार्य बहुत अच्छा लगा है। परंतु, ऐसा कार्य सदैव होता रहना चाहिए।

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पु. प्रबल जी महाराज ने संदेश महाराज श्री के श्री चरणों में समर्पित किया। सभागार में पूज्य श्री धर्म सम्राट जी एवं शंकराचार्य जी ने संदेश की पुष्टि करते हुए कहा कि यह सनातन कार्य है। सनातन जीवों के सनातन कल्याण हेतु इससे बढ़कर कोई कर्म नहीं है। यदि आपकी भावना है इस प्रकार का कर्म सदैव चलता रहे। तो संस्कृत विद्यालय नगर में खोलो, जिसमें वेद – व्याकरण, ज्योतिष आदि विद्याओं को आत्मसात कर विद्वान निकलेंगे। और इस प्रकार का कर्म चलता रहेगा। कोई इस नगर में दीनदार ईमानदार सेठ हो, तो ऐसे अनूठे कार्य के लिए धर्म रूपी वृक्ष को स्थापित करने के लिए जमीन की आवश्यकता है। इतने में स्वनामधन्य दीनदार ईमानदार सेठ श्री विश्वनाथ मंगाली बाला परिवार ने उसी सभा में खड़े होकर पूज्य श्री से प्रार्थना की कि महाराज म्हारी जगह पड़ी है। विने थे धर्म कार्य में ले लो। उसी समय ही धर्म सम्राट जी एवं शंकराचार्य जी महाराज के चरणों में 19 किला भूमि पूज्य श्री प्रबलजी महाराज को श्री धर्म संघ महाविद्यालय एवं आयुर्वेद रसायनशाला के लिए प्रदान कर अपने कुल का उद्धार किया। जब से निरंतर पूज्य श्री प्रबलजी महाराज देश के कौने – कौने में जाकर यज्ञ की ध्वजा फहराने के साथ – साथ भादरा नगर का भी नाम फहराया। यद्यपि यह स्थल पूराकाल से ही सिद्ध रहा है। यहीं पर खेताराम जी महाराज भी अपने सिरपर अग्नि की बाल्टी लेकर चला करते थे। तथा जल हेतु बावड़ी कुंड का निर्माण किया करते थे। आज भी उन्हीं के हाथों से खोदा हुआ इंद्रकुंड आकाशगंगा विद्यमान है। भयंकर विकराल गर्मी में जल समाप्त हो जाया करता था। माताए अपने – अपने घरों से जल लाती थी। ऐसी स्थिति को देख पूज्य श्री प्रबल जी महाराज ने उस कुंड में सप्त नदियों के जल को लाकर उस कुंड में डाला है। जब से आज तक उस कुंड का जल कभी समाप्त नहीं हुआ है। आज तो जल का अगाध भंडार वहां विद्यमान है।
1. शीतल जल प्याऊ है।
2. सवा लाख लीटर वाली दिव्य टंकी है। जिससे पूरी कुटिया के कौने – कौने में जल की पर्याप्त सुविधा है।
3. एक ट्यूबवेल है।

आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र

36 * 36 में निर्मित यज्ञशाला है। जिसमें नित्य निरंतर यज्ञ भगवान की उपासना होती रहती है। वार्षिक उत्सव जैसे पावनतम उत्सवोँ में विशालयज्ञ किए जाते हैं। 9 कुंडों में विद्यमान यज्ञशाला जीव की नवग्रह शांति के लिए इस यज्ञशाला का प्रयोग किया जाता है। अर्थात जो इसकी प्रदक्षिणा कर लेता है उसकी नवग्रह शांति हो जाती है ऐसा लोगों ने अनुभव किया है।

एक विशाल लगभग 90 * 90 मे देवाधिदेव महादेव सिद्धेश्वर महादेव का विशाल मंदिर भी है। सिद्धेश्वर महादेव सभी भक्तों की समस्या को हरने वाले माने जाते हैं। इन दिव्य नर्मदेश्वर महालिंग को पूज्य श्री प्रबल जी महाराज अपनी नर्मदा मां की साधना में निरत रहकर धावड़ी कुंड में स्नानार्थ डुबकी लगाई, उसी समय सिद्धेश्वर महादेव विशालकाय रूप में प्रकट होकर हाथों में आये, उन्हीं की विधिवत प्रतिष्ठा 1998 में ज्येष्ठ शु. दशमी, काशी के विदनमुर्धन्य पु. श्री लक्ष्मीकांतदीक्षित जी महाराज ने सम्पन्न की। आज उस देवालय के पावन प्राङ्गण में महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य पर जन समुदाय कल्याण हेतु सपादलक्ष पार्थिवेश्वर भगवान की पूजा की जाती है।

श्री गणेश, भगवती माँ, दुर्गा, विष्णु, सूर्य भगवान के चारों मंदिर भी इसी दरवार में चारों कोणों में स्थापित होने है। भगवान के दिव्य गण व काल को भी जीतने वाले, कलि की समस्या को चुटकी में शमन करने वाले कालभैरव भगवान का दिव्य मंदिर पीपल व नीम की छाव तले बना हुआ है। जहाँ भगवान की नित्य उपासना विधिपूर्वक विद्धानों द्वारा सम्पन्न होती है।

भगवान श्री राम के अनन्य भगवान भक्त अञ्जनीनन्दन पवनसुत हनुमान जी महाराज का भी विशाल सुंदर व्यवस्थित मंदिर बना हुआ है। हनुमान जी महाराज जब से बैठे है। तब से निरंतर विद्यालय प्रगति पथ को छू रहा है। इनकी उपासना कभी खाली नहीं जाती है। मन के भावों को हनुमान जी को सुनाये, निश्चित कल्याण होगा।

बुद्धि प्रदात्री भगवती शारदा का एक विशाल है। उसी में भगवती का दिव्य सिहांसन हंसारूढ माँ भगवती विराजित है। जो सभी के अज्ञान को नष्टकर ज्ञानरूपी ज्योति प्रदान कर रही है। सभी छात्र माँ भगवती को मनाते है, रिझाते है तथा फल प्राप्त करते है। तथा एक विशाल पुस्तकालय भी स्थित है।

आश्रम की शोभा शब्दातीत है। मयूरों का नृत्य, चिड़ियों की चिड़चिड़ाहट, (शुकों) तोते की सुमधुर ध्वनि, कोयल की मीठी वाणी, ध्वनि किसको मुग्ध नहीं करती हो, एक तरफ ऐसा पवित्र वातावरण, दूसरी ओर गौमाता की सुमधुर सुव्यक्त ध्वनि मां को सुनकर सभी का हृदय भावविभोर हो जाता है। छोटे-छोटे वत्स अपनी मां का दूध पीकर जब आश्रम में हिरण की तरह स्वच्छंद विचरण करते हैं। तो उसमें श्री पूज्य श्री प्रबल जी महाराज जैसे वीरव्रती त्यागी बलिदानी अपने हाथों से सेब – केला, जलेबी – मिठाई, प्रचुर मात्रा में खिलाते हो, तो वे गौ माताएं भी महाराज श्री का पूरा ध्यान रखती है। जिस दिन महाराज नहीं दिखलाई पड़ते तो रंभाती हैं।

गौ माताओं से सुसज्जित एक छोटी गौशाला है। दिव्य भव्य सभी भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा को कहा जाता है। संस्कृत भाषा के विना देव भी प्रसन्न नहीं होते हैं। अतः देव व पितरों की प्रसन्नता में भाषा का माध्यम संस्कृत ही हो सकता है। संस्कार को प्रदान करने वाली भी यही भाषा है। जिस भाषा का प्रयोग पुराकाल में सभी मानव किया करते थे। अतः आराधना, यज्ञ, संस्कार, संस्कृति विना संस्कृत भाषा पढ़े, जाने असंभव है।

हमारे मंगाली वाले परिवार ने अपने कुलोद्धार हेतु भूमि प्रदान कर वह पुण्य कार्य संपादित किया है, जो कार्य करोड़ों रुपया खर्च करने पर नहीं प्राप्त हो सकता है। आज जितना भी पूजा पाठ – यज्ञ – स्वाध्याय – प्रवचन – कथा – उत्सव – संपादित हो रहे हैं, उनमें से इन सभी का हिस्सा हमारे मंगाली बाला परिवार को प्राप्त हो रहा है और होता रहेगा।

पू. श्री प्रबल की महाराज ने अत्यंत विचित्र साधना संपादित कर उजड़ी हुई भूमि को चमन बनाया है, जिसमेें देश के विभिन भागों के श्रीमानों के सहयोग के बल से आज अपनी उस स्थिति को प्राप्त हुआ है। जहाँ पर सैकड़ों छात्र लगभग आवास में रहकर वेद – वेदाङ्गों का अध्ययन करते हैं। प्रथमा से आचार्य पर्यन्त अर्थात कक्षा 8 से प्रारंभ होकर ऍम. ए. पर्यन्त चलने वाली इस पवित्र शिक्षा को प्रदान किया जाता है। इस लोक में भी उन्नति एवं परलोक में भी शांति की प्रदातृ यह विद्या है।

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आज भौतिक वातावरण में संस्कृत विद्या के साथ-साथ कंप्यूटर अंग्रेजी का ज्ञान भी अपेक्षित है।

इस प्रकार से सुसज्जित चारों दीवारों से मंडित, हव्य – कव्य के सुर वातावरण से सुशोभित श्री धर्म संघ महाविद्यालय एवं आयुर्वेद रसायनशाला श्रोत्रिय ब्रह्रानिष्ठ पूज्य पाद श्री वीरव्रती प्रवल जी महाराज के स्वास्थ्य को दृष्टिपात करते हुए उनके अनुकूल एक दिव्य कुटिया, छात्रावास, आचार्य आवास, अतिथि आवास, विशाल भोजनालय, सरस्वती सदन, पुस्तकालय – वाचनालय, गौशाला, शंकराचार्य निलय, कार्यालय से बंधा हुआ एक परिसर है।

त्रिपोलिया द्वार से सुसज्जित प्रवेश व निकास द्वार है। कलियुग की विषम वायु से बच पाना दुष्कर है, अतः हम लोगों का स्वास्थ्य ठीक प्रकार से रह सके। पूज्य श्री जी महाराज ने स्वास्थ्य के ध्यान को दृष्टिपात करते हुए जन कल्याण हेतु एक विशाल श्री धर्म संघ कैंसर आयुर्वेदिक हॉस्पिटल का निर्माण किया है। जिसमें पंचकर्म के माध्यम से शरीर शुद्धि होगी। बिना शरीर शुद्ध हुए रोग निदान असंभव है। औषधियों का निर्माण भी कुशल वैद्यों की दृष्टि में संचालित होगा। जिसमें नवग्रह व नक्षत्र वाटिका विद्यमान होगी। इसके प्रभाव से भी हम रोगों का निदान कर सकेंगे।

श्री धर्मसंघ महाविद्यालय एवं आयुर्वेद रसायनशाला, भादरा