अनन्त श्री विभूषित
पूज्यपाद समर्थ श्री त्र्यम्बकेश्वर चैतन्य जी महाराज

शंकराचार्य परम्परा संवाहक अद्वैतवाद सम्पोषक वेद वेदांग निष्णात परमश्रध्देय वीतराग शिरोमणि श्री त्र्यंबकेश्वर चैतन्य जी महाराज ने 2003 नाशिक महाकुंभ के पावन अवसर पर  परम श्रध्देय द्विशतक्रतु शैवराट वीर व्रती श्री प्रबल जी महाराज से दीक्षा प्राप्त कर सघन वनों में तपस्या कर उत्कृष्ट कोटी की साधना से समाज हितार्थ ग्रंथों का प्रणयन कर रहे हैं। मां गंगा – गायत्री नर्मदा की कृपा महाराज श्री पर रही है। अनेक पुरश्चरण अनेक परिक्रमा कर तन – मन को परम पवित्र बनाया है। लेखन शैली के परमधनी, प्रवचन की अद्भुत शैली ने पूरे देश को मंत्रमुग्ध किया है। शास्त्रों का पांडित्य,नित्यनिरंतर सरल व सहज स्वभाव के परमधनी महाराज श्री हैं।

ज्ञान – भक्ति – वैराग्य की त्रिवेणी का दर्शन महाराज श्री के जीवन शैली से ज्ञात होता है।
आप ही के मार्ग निर्देशन में अनेक संस्थाएं प्रगति पथ पर अग्रसर हैं।

शिक्षा – चिकित्सा – वैदिक – संस्कृति – यज्ञ – गौ – संत – ब्राह्मण प्रकृति का संरक्षण संवर्धन महाराज श्री के आशीर्वाद से हो रहा है।