!! श्री धर्मसम्राट विजयतेतराम !!
भगवत्पाद आद्यगुरु शंकराचार्य भगवान के उपरान्त 19 वीं शताव्दी के अभिनवशंकर पदवाक्यप्रमाण पारावारीण अष्टांग योगनिष्ठ विश्वविश्रुत धर्मसम्राट स्वामी श्री हरिहरानंद सरस्वती करपात्री जी महाराज का अवतार 1907 में धर्मरक्षार्थ हुआ।
आपश्री का नाम करपात्र क्यों पड़ा ? क्योंकि करौ एव पात्रं यस्य सः करपात्र, कर ही है पात्र जिसके, वे करपात्री कहलाये। हाथों में ही जितना आ जाए, उसी से एक समय भिक्षा करना, आजीवन एक वस्त्रधारी, गंगाजलसेवी,आजीवन धनस्पर्श किये बिना धर्म का प्रचार प्रसार करने वाले।
सृष्टि के इतिहास में पितामह भीष्म के उपरान्त पूज्यजनों की प्रसन्नता हेतु अपने सुखों का उत्सर्ग करने वाले महामनीषी, लेखनी के परमधनी, वक्ताओं में प्रखर शास्त्रनिष्ठ वक्तृता,योगियों में योगी, ज्ञानी में महाज्ञानी, भक्तों में भक्त, विरक्तों में विरक्त, त्यागी में महात्यागी, पराम्वा माँ भगवती त्रिपुर सुंदरी के
परमोपाषक, पञ्चदेवोपासना के सम्पोषक, अप्रतिम , संगठनकर्ता, नास्तिकवाद के खण्डनकर्ता, धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज हुए। जिन्होंने 75 वर्ष में देश की समृद्धि के लिए अध्यात्म का पाठ पुरे विश्व को पढ़ाया। अल्पकाल में ही साधनारत कोयलाघाटी ऋषिकेश से देश के प्रख्यात महामना मदनमोहन मालवीय जी से भी शास्त्रार्थ कर पुष्कल कीर्ति को प्राप्त किया।
आप अद्वितीय महापुरुष थे, सकलयोग्यता संपन्न होने पर भी स्वयं शंकराचार्य पद पर अभिषिक्त न होकर 165 वर्ष से रिक्तपीठ उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठ पर भारतधर्म महामण्डल एवं धर्मसंघ सहित भारतवर्ष के मूर्धन्य विद्वानों, महापुरुषों को संगठित कर अनंत श्री समलडंकृत पूज्य गुरुदेव स्वामी श्री ब्रह्मानंद सरस्वती जी महाराज को शंकरचार्य पद पर सुशोभित कराया।
स्वयं धर्मप्रचार प्रसार का अखिल भारतीय रामराज्यपरिषद की स्थापना कर भारतवर्ष के आस्तिक जन समुदाय को धर्ममार्ग पर प्रवृत करते रहे। आपश्री जी ने ऐतिहासिक गोरक्षा आंदोलन देश की राजधानी दिल्ली में 7 नवंबर 1966 को किया। जिसमे समग्र राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने, समग्र अखाड़ों के प्रतिनिधि, संत – महंत मंडलेश्वर – महामंडलेश्वर शंकराचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभाचार्य – रामानुजाचार्य प्रभृति महापुरुष, प्रमुख संस्थाओं के सक्रिय सदस्य, उस समय निर्मित सभी गोसेवा समिति के सदस्यों, व भारतवर्ष के दीनदार ईमानदार गोभक्तों के सहयोग से ‘अखिल भारतीय सर्वदलीय गोरक्षा महाभियान समिति द्वारा विराट आंदोलन सम्पन्न हुआ।
परिणाम आज साक्षी है । सर्वत्र गोमाता की चर्चा हो रही है । इस देश में धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद् – भावना हो, गोहत्या बंद हो, गोमाता की जय हो, संविधान शास्त्रीय हो, मंदिर मर्यादा सुरक्षित शास्त्रानुमोदित हो, ये उद्घोष आज सकलविश्व में गूंज रहे है। ये उन्हीं महापपुरुष की देन है। आपश्री वहुविध क्षेत्रों में धर्मार्थ उपक्रम किये जिसमे प्रमुख्यतः निम्न है। देश की आजादी ( स्वतंत्रता) हेतु आध्यात्मिक ऊर्जा तैयार की, श्रीमन्नारायण स्वरुप यज्ञ नारायण भगवान की उपासना से ४ विशाल लक्षचण्डी सम्पन्न की । शिक्षा क्षेत्र में आपश्री ने धर्मसंघ शिक्षा मंडल की स्थापना, देश के प्रत्येक राज्य व शहरों में विद्यालयों की संस्थापना हो। जिसमेें वेद वेदांग – धर्मशास्त्र – अर्थशास्त्र – राजनीती – आयुर्वेद प्रभृति विषयों का ज्ञान ।
उत्तर भारत में श्रीविद्या के प्रबर्तक शास्त्रों के सम्पोषक, वर्णाश्रम धर्म के रक्षक, प्रकृति के सम्पोषक महापुरुष ने 1982 में अपनी साधना के बल से ब्रह्मरंध्र का भेदनकर काशी में करपात्रिधाम (वेदशास्त्रानुसन्धान ) केंद्र केदारघाट पर श्रीमन्नारायण का स्मरण व माँ गंगा को निहारते हुए ब्रहालीन हो गए ।