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मेकल पर्वत अमरकंटक से निकलकर भरूच (गुजरात) हिन्द महासागर में जिसका विलय होता है, उस सत्युगीय पावन नदी का नाम नर्मदा है। 3600 किलोमीटर की मां का दोनों ओर से परिक्रमा क्षेत्र है। नम्रता, मृदुता, कोमलता, सुशीलता प्रदातृ , धैर्य, का पाठ पढाकर सच्चा मानव बनाने वाली मां नर्मदा है। कंकरीले, पथरीले घनघोर जंगलों में विचरता हुआ परिक्रमावासी मां का सदा स्मरण करता रहता है। मां जंगलों में भी मंगल प्रदान करती है। अनेक रूपों में मां के दर्शन होते हैं। मनुष्य को अवश्य अपने जीवन में परिक्रमा करनी चाहिए। समिति नर्मदा संस्था परिक्रमावासी को भोजन – औषधि – वस्त्र से सेवा करती है। तथा शूलपाणि की झाड़ियों में निवास करने वाले (भील जाति) आदिवासी लोगों की भी सेवा की जाती है। आप भी अपना सहयोग कर पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।