नर्मदा सेवाभियान?

मेकाल पर्वत – अमरकंटक से निकलकर भरूच (गुजरात) हिन्द महासागर में  जिसका विलय होता है, उस सत्युगीय पावन नदी का नाम नर्मदा है| 3600 किलोमीटर की मां की दोनों ओर से परिक्रमा क्षेत्र है ! नम्रता, मृदुता, कोमलता, सुशीलता, धैर्य का पाठ पढ़ाने वाली व सच्चा मानव बनाने वाली मां नर्मदा है ! कंकरीली, पथरीली घनघोर जंगलों में विचरता हुआ  परिक्रमावासी मां का सदा स्मरण करता रहता है ! मां जंगलों में भी मंगल प्रदान करती है ! अनेक रूपों में मां के दर्शन होते हैं ! मनुष्य को अवश्य अपने जीवन में परिक्रमा करनी चाहिए |संस्था परिक्रमा करने वाले व आदिवासी लोगों को वस्त्र-भोजन – ओषधि – की सेवा से संतुष्ट किया जाता है |

कन्या विवाह

गरीव, अनाथ, दीन दु:खी अशक्त कन्याओं के परिणय में संस्था सहायता प्रदान कर कन्या का आशीर्वाद लेती है !

ग्रंथ प्रकाशन

पुरातन पांडुलिपियों व महापुरुषों द्वारा रचित ग्रंथ का प्रकाशन समाज जागृति हेतु किया जाता है| अभी तक नैक ग्रंथों का प्रकाशन हो चुका है ! अग्रिम प्रकाशनार्थ – ग्रंथों को क्रम जारी है

क्र० पुस्तक नाम – लेखक

महाशिवरात्रि महोत्सव - भादरा (राज०)

सर्वसमाज को महोत्सव के माध्यम से सगुण साकार परमपिता परमेश्वर भगवान शंकर की चतुष्प्रहर पूजा का अवसर समान रूप में एकत्र प्राप्त हो जाता है ! शिवरात्रि पर्व पर सबसे बड़ी विश्व की पूजा सवालाख पार्थिवेश्वर भगवान की पूजा करने का अवसर हम सबको प्राप्त होता है!  अवश्य एक बार दर्शन करें !

अन्नक्षेत्र

देश के विभिन्न राज्यों में नि: शुल्क भोजन , आनाथ दीन दु: खी, वृद्ध ,असहाय आदिवासी, विधवा व संत ब्राह्मण अतिथि की सेवा ट्रस्ट अन्नक्षेत्र  के रूप में कर रहा है ! आप सबका प्रेम मिलता रहे, यह सेवा अवश्य ही दिनोंदिन बढ़ने ही वाली है ! वर्तमान में अनेक स्थानों पर अन्नक्षेत्र की व्यवस्था सुचारु रूप से आप सबके सहयोग से संचालित हो रही है !

कल्पवास (तीर्थराज प्रयाग)

कल्पवास क्या है !
सांसारिक व्यामोह से सहजतया विमुक्त होकर जीवन पद्धति के द्वारा आत्मपरिष्कार का पावन अवसर हैं ! माघमासीय प्रयागस्थ कल्पवास !
ऋषियों की पावन परंपरा का साक्षात अनुभव साधक को त्रिवेणी संगम की मातृवत वात्सल्य प्रदान करने वाली सात्विक रजमें सहजतया प्राप्त हो जाता है !
व्रत – जप – तप – यज्ञ – दान संयम आदि के द्वारा देह शोधन की आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धति है कल्पवास !
आसुरी – प्रवृत्ति से मुक्त होकर दैवीय संपत्ति अर्जित करने का केंद्र है कल्पवास !
घोर-तम कलिकाल में भी सत्युगीय निर्दोष अनुपम लोकोत्तर सृष्टि का प्रत्यक्ष दर्शन है कल्पवास !

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महा कुंभ महापर्व (विश्व का सबसे बड़ा मेला)

महा कुंभ महापर्व क्या है? जप – तप – व्रत – दीक्षा – तितिक्षा – धैर्य  दान (अन्न – वस्त्र – खाद्य – सामग्री, स्वर्ण – रजन आदि) सद्गुणों के द्वारा आत्मचेतना को ऊर्जस्वित करने का पुण्यमय महानुष्ठान है महाकुंभ !
वर्तमानकालिक विषाक्त प्रदूषित पर्यावरण से विरत होकर विशुद्ध प्रकृति पंचमहाभूतों  (पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश) के पवित्र सानिध्य के  द्वारा आत्मानुसंधान का पवित्र पर्व है  – महाकुंभ !
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्युर्माડमृतं गमय का मूर्तिमन्त प्रयोगात्मक प्रकल्प है महाकुंभ !
कलियुग में सतयुग दर्शन करने का महापर्व है महाकुंभ !

व्यास पूर्णिमा

  • अनादि काल से संप्राप्त ज्ञानविज्ञानमयी शास्त्र परंपरा के संवाहक ऋषियों मुनियों गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करने का अप्रतिम पर्व है – व्यास पूर्णिमा ।
  • तीन ऋणों में से एक प्रमुखत्म ऋषि ऋण से ऋणी होने का एक दिवस है गुरु पूर्णिमा।
  • ईश्वरीय चेतना को गुरु परंपरा के द्वारा आत्मसाक्षात करने का कल्याण पर्व है – व्यास पूर्णिमा।
  • ज्ञाताज्ञात पापों के परिमार्जन की विधि बोध कराने वाला पर्व है – व्यास पूर्णिमा ।
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मानसिक चिकित्सा केंद्र -

डिप्रेशन के रोगी हेतु कुशल वैद्य निरीक्षण कर उनको अपने निर्देशन, औषधि व प्राकृतिक चिकित्सा तथा साधना के बल पर निरोगी बनाने का प्रकल्प जारी है !

संत सम्मेलन

भारतीय संस्कृति व संस्कार का ज्ञान पूरे विश्व को मिले ! तदर्थ भारतवर्ष के अलग अलग संस्थानों पर विराट सन्त सम्मेलन, संस्कार व संस्कृति ज्ञान के लिए कराया जाता है। जिसमें देश के ख्याति प्राप्त शंकराचार्य, वल्लभाचार्य ,निंबार्काचार्य, रामानुजाचार्य, रामानंदाचार्य प्रभृति संत महापुरुष, व विद्वानों के माध्यम से जनता की आध्यात्मिक समस्या का निदान शास्त्रीय स्वरूप में दिया जाता है।

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नशा मुक्ति केंद्र

आज की युवा पीढ़ी तरूण होने से पूर्व ही वृद्ध हो जाती है। उसके लिए संस्थान पीढ़ी ही भविष्य है, वह भविष्य यदि नशे की चपेट में आ गया  तब भविष्य खतरे में है।
इसके लिए ‘नशा मुक्ति चेतना समिति’ के माध्यम से नशे से होने वाली हानि को जनता नशे के प्रति जागृत करने का प्रयास किया जा रहा है। आप भी जुड़कर नशे को समाप्त कर  सकते है।

 

 

 

अखिल भारतीय ब्रहमवेग समिति

15 वर्ष से 30 वर्ष के नौजवान बालकों को सही दिशा प्रदान करना इसका प्रमुख कार्य है। दिशा भटकने की यही उम्र है। अतः इसी दिशा में इनको समिति संस्कार का पाठ पढ़ाकर, दानव मानव के अंतर को समझाकर, राम – रावण, दुर्योधन और युधिष्ठिर जैसे आख्यानों को प्रस्तुतकर, नशा ही नाश की जड़ है, आदि भावों से ओतप्रोत कर समाज में व्यस्न मुक्त भारत जागृति का प्रयास कर रही है।
नौजवान बालकों के भविष्य में आने वाले अवरोधों का निदान भी कर रही है। शिक्षा व्यवसाय संबंधी कार्यों में आ रहे अवरोध के लिए ज्योतिष – वास्तु – वस्तुतः परिस्थिति का आकलन कर भविष्य निर्माण में संस्थान शास्त्रीय सहयोग प्रदान कर रहा है।
आदिवासी क्षेत्र में या अशिक्षित वर्ग को संस्कारवान बनाने के लिए हनुमान चालीसा, शिव चालीसा, दुर्गा चालीसा गणेश चालीसा, रामायण व संस्कृत की सरल प्रार्थना उनसे करवायी जा रही है, जिससे वे लोग भी अपनी संस्कृति,संस्कारों की रक्षा स्वयं व आत्मीयजनों से करवा सके, संस्कारवान सके।
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महायज्ञ -

भूतलपर सृष्टि की उत्पति जिस पावन कर्म से हुई। आज उसी को मानव भूल बैठा है। पाश्चात्य संस्कृति की धूल में उड़ता हुआ जीव भूलोक को छोड़कर चंद्र मंगल लोक की यात्रा करने लग गया है। परिणाम प्रत्यक्ष है। जिस देश में घर घर में यज्ञ होता था, आज वहां क्या हो रहा है।
भगवान को भोजन यज्ञ से मिलता है। यज्ञ से ही सकल देव प्रसन्न होते हैं। उनकी प्रसन्नता से ही अखिल लोक सञ्चालित है। विश्व कल्याण में, महामारी जैसी आपदा में, भूकंप व उल्कापात में, सुनामी जैसी लहरों में भगवान ही याद आते हैं। पर भगवान को कुछ खिलाना ना पड़े, भगवान हमारी सुनते रहे, हम भगवान की न सुने, न माने। ये हम सबकी धारणा बन चुकी है।
प्रिय मित्रों, इन सब आपदा से निवृति के लिए देश में रामराज्य की भावना स्थापित करने के लिए महायज्ञ ही साधन है।

जब – जब राक्षसों पर संकट आया, राक्षसों ने विधि पूर्वक यज्ञ करवाया। हम तो मनुष्य हैं। प्रत्येक संकट यज्ञ से दूर होते हैं।सकल रोग शोक की निवृति यज्ञ से है। ईश्वर प्रसन्न, पितरतुष्ट यज्ञ से ही होते हैं। 84 लाख योनियों को भोजन यज्ञ से ही मिलता है। दूसरा कोई साधन नहीं है।
प्राच्यसंस्कृति को जीवन शैली में उतारते हुए महायज्ञ को विधिपूर्वक करना चाहिए। धर्मसम्राट जी ने देश की आजादी व राम राज्य स्थापनार्थ विशाल महायज्ञों की श्रृंखला बनाई, उनके कृपा पात्र यज्ञसम्राट वीरव्रती श्री प्रवल जी महाराज ने भारतवर्ष में यज्ञ की धूम मचाई! भारतवर्ष में सबसे ज्यादा व विशाल यज्ञ करने वाले 273 यज्ञों की श्रृंखला बनाने वाले, महापुरुष यज्ञ सम्राट पूज्य श्री प्रवल जी महाराज हुए।
इनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलो, बढ़ो, स्वयं सुखी निरोगी रहो, दूसरों को भी रखो। यह सब यज्ञ से ही संभव है।

 

 

भ्रूण हत्या महाअपराध

देश की दशा और  दिशा बदलने में यह अपराध भी कारण है ! अतः सम्भ्रान्त परिवारों में भी आज यह अपराध प्रायः हो रहा है ! उनको इस अपराध को न करने का अनुरोध धर्मरक्षार्थ, कथा प्रवचन के माध्यम से कराया जा रहा है!